धर्मगुरु बनाम मनोरंजन: यूट्यूबर, इन्फ्लुएंसर और मीडिया की चुनिंदा बहसें
✍️ लेखक – BeepShip

भारत की धरती ऋषि-मुनियों और तपस्वियों की भूमि रही है। यहाँ धर्म, संस्कृति और वेद-पुराण की परंपरा केवल ग्रंथों तक सीमित नहीं रही, बल्कि गुरु-शिष्य परंपरा और कथाओं के माध्यम से पीढ़ी दर पीढ़ी जनमानस तक पहुँचती रही। परन्तु आज जब भी कोई धर्मगुरु अपनी कथा, प्रवचन या वेद मंत्रों की व्याख्या करने के लिए दक्षिणा या दान स्वीकार करता है, तो सबसे पहले यूट्यूबर, इन्फ्लुएंसर और न्यूज़ मीडिया इस विषय को बहस और विवाद का मुद्दा बना देते हैं।
टीवी चैनलों पर डिबेट शो चलने लगते हैं, सोशल मीडिया पर मीम और ट्रोल्स की बाढ़ आ जाती है, और यूट्यूबर ‘एक्सपोज़’ शीर्षक वाले वीडियो बनाकर लाखों व्यूज बटोरते हैं। इन सभी का तर्क यही होता है कि –
- “धर्म पैसा कमाने का साधन नहीं है।”
- “सच्चा संत तो मुफ्त में उपदेश देगा।”
- “अगर प्रवचन के लिए पैसे लेने हैं तो यह बिज़नेस है, धर्म नहीं।”
धर्मगुरुओं द्वारा दान का उपयोग

क्या कभी इन यूट्यूबर, इन्फ्लुएंसर और मीडिया ने यह दिखाया कि वह पैसा आखिर जाता कहाँ है? वही धर्मगुरु उस धन से—
- निर्धनों के लिए अन्नक्षेत्र चलाते हैं।
- सैकड़ों-हज़ारों गरीब बच्चों की शिक्षा का भार उठाते हैं।
- गौशाला, आश्रम, अस्पताल, जल वितरण, वृक्षारोपण जैसे कार्यों को आगे बढ़ाते हैं।
- प्राकृतिक आपदा आने पर सबसे पहले सेवा दल और भोजन सामग्री इन्हीं आश्रमों से निकलती है।
यानी, वह धन केवल व्यक्तिगत वैभव में नहीं, बल्कि समाज की भलाई में लगाया जाता है।
धीरेंद्र शास्त्री केस: मीडिया की बहस का उदाहरण

हाल ही में धीरेंद्र शास्त्री (बागेश्वर धाम सरकार) पर मीडिया ने बड़ा विवाद खड़ा किया। उन पर आरोप लगे कि वे “चमत्कार दिखाकर लोगों को गुमराह” करते हैं। NBDSA तक को चैनलों को नोटिस देना पड़ा। परंतु जब वही धीरेंद्र शास्त्री भूखों को भोजन, निर्धनों की शिक्षा और अस्पतालों के लिए दान उपयोग करते हैं, तो उस पर शायद ही कभी कोई बहस होती है।
मनोरंजन जगत: चुप्पी और दोहरा मापदंड

अब प्रश्न उठता है— क्यों वही यूट्यूबर और मीडिया जब किसी फिल्म अभिनेत्री को एक आइटम सॉन्ग पर नाचने के लिए करोड़ों मिलते देखते हैं, तो चुप्पी साध लेते हैं?
तमन्ना भाटिया जैसे सितारे एक-एक गाने के लिए करोड़ों रुपये लेते हैं, जबकि समाज इसे “ग्लैमर” के नाम पर सहज स्वीकार करता है। नोरा फतेही की फीस पर भी कई बार मीडिया ने रिपोर्ट किया कि वह आइटम नंबर्स के लिए लाखों-करोड़ों लेती हैं।
क्लब, पार्टियों और रियलिटी शो में भोगवाद और अश्लीलता को बढ़ावा दिया जाता है, लेकिन इस पर न तो बड़े डिबेट होते हैं और न ही यूट्यूबर “एक्सपोज़” वीडियो बनाते हैं।
समाज पर प्रभाव

धर्मगुरु का प्रवचन – बच्चे संस्कार सीखते हैं, लोग सेवा भावना से जुड़ते हैं, परिवार मिलकर धार्मिक अनुष्ठान में बैठता है।
फिल्मों और शो का नंगापन – बच्चे समय से पहले अश्लीलता की ओर आकर्षित होते हैं, समाज पश्चिमी भोगवाद में फँसता है, और परिवार टूटने की कगार पर पहुँचते हैं।
निष्कर्ष

यदि यूट्यूबर, इन्फ्लुएंसर और मीडिया वाकई समाज के प्रति ईमानदार हैं, तो उन्हें धर्मगुरुओं पर सवाल उठाने से पहले मनोरंजन उद्योग की भी सच्चाई और गंदगी पर समान रूप से बहस करनी चाहिए।
क्योंकि धन का सही उपयोग वही है जो समाज की सेवा और संस्कृति की रक्षा में लगे— न कि वह जो केवल शरीर प्रदर्शन और भोगवाद को बढ़ावा दे।